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Wednesday, 20 December 2017

नासमझ जिंदगी में समझ

नासमझ होकर जिंदगी में समझ आयी,
नौ बरस की मोहब्बत में क्यूँ कमी आयी।
देख सकती नहीं दिल के नासूरों को,
यूँ शक्ल की बेनूरियत ने क्या सितम ढायी।
एक पल तक हँसी ,दूजे पल में है गम,
क्या मोहब्बत किया किसी से हमने कम।
तुम शहर -शहर घूमो , मुझे गम नहीं,
यूँ मुझे तुम थे ढूँढ़े तो फिर कम नहीं।
आज मिलकर बिछड़ते ही ये दिख गया,
नूर चेहरे में नहीं तो दिल कौन देखता ।
आँख आँसू लिए,दिल है बोझिल हुआ,
एक पल में सारा इमोशन मिल गया।
बेरुखी ने गजब का सितम ढा दिया,
मैं हूँ तन्हा खड़ा,तुमको है क्या पता।
तुम जाओ जहाँ भी खिलखिलाती रहो,
मेरी नजरों में जादू सी छाती रहो।
है मोहब्बत करी तो निभा लूँगा मैं,
तुमसे सिकवा नहीं,दिल दुखा लूँगा मैं।
बस है कहना मेरा तुम रहो खुश मगर,
फिर कभी दिल न तोड़ो तुम किसी का अगर।
तुम मेरी जिंदगी से मेरी मौत तक,
दिल में हो तुम अभी दिल में थी तुम कभी।
दिल को मेरे अगर मैं समझा भी लूँ,
धड़कनो को मगर कैसे मैं समझा सकूँ।
चलो तुम वो करो, तुमको जो अच्छा लगे,
लाल जोड़े में दुल्हन किसी की बनो।
मेरी आँखें छलककर तुम्हें खुश करें,
दिल के नासूर मेरे,तेरे दुख हरें।
तुम मेरे दिल के घर में, सदा ही रही,
आज फिर से दुआओं में,हो तुम यहीं।

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